रूस और यूक्रेन का संघर्ष खतरनाक मोड़ लेता जा रहा है. अमेरिका आज रूस के खिलाफ एक खुले प्रॉक्सी वॉर में शामिल है, जिसमें वह यूक्रेन को हथियार से लेकर ट्रेनिंग, खुफिया जानकारी, और धन मुहैया करवा रहा है, ताकि वह रूस के साथ लड़ाई जारी रख सके. अमेरिका ने खुलेआम घोषणा की है कि यूक्रेन संघर्ष में उसका लक्ष्य रूस को रणनीतिक रूप से हराना है. रूस को सैन्य रूप से इतना कमजोर करना है कि वह अपने पड़ोसियों के लिए खतरा न बन सके. अमेरिका को यह भी उम्मीद है कि इससे रूस में शासन परिवर्तन हो सकता है. अमेरिका ने रूस पर सबसे कठोर प्रतिबंध लगाए हैं ताकि उसकी अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाए. उसने रूस को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश की है. रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध अपराधी घोषित करने की भी कोशिश की है.
हालांकि अमेरिका और नाटो की यह रणनीति काम नहीं आई. रूसी अर्थव्यवस्था ने प्रतिबंधों का सामना किया, पर शुरुआती झटकों के बाद अपनी स्थिति मजबूत की. रूस ने युद्ध सामग्री के उत्पादन को बढ़ाया. उसने नाटो के उन्नत हथियारों और रणनीतियों के खिलाफ नई हथियार तकनीको पर काम किया और अपने सैन्य संसाधनों का समुचित उपयोग किया है. रूस कूटनीतिक रूप से अलग-थलग नहीं है. चीन के साथ उसकी रणनीतिक साझेदारी अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई है. भारत अपने पारंपरिक विश्वास और मित्रता के संबंधों को बनाए रखने के लिए दृढ़ है और उसने पश्चिमी दबावों का विरोध किया है ताकि मास्को के साथ संबंधों को कमजोर न किया जाए. आज रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता है.
भारत ने यूक्रेन में रूस की सैन्य कार्रवाई की निंदा करने से इनकार कर दिया है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा के प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया है. भारत और ग्लोबल साउथ के कई देश ‘पश्चिमी कहानी’ को स्वीकार नहीं करते कि रूस ने यूक्रेन में “अकारण युद्ध” शुरू किया. वे संघर्ष की उत्पत्ति को समझते हैं, जिसमें नाटो का विस्तार एक प्रमुख कारण रहा है. वे समझते हैं कि अगर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा अनुमोदित मिन्स्क समझौते को लागू किया गया होता, या अगर इस्तांबुल में रूसी और यूक्रेनी वार्ताकारों द्वारा पहुंची व्यापक सहमति का पश्चिम ने विरोध नहीं किया होता, तो संघर्ष समाप्त हो सकता था. यही कारण है कि ग्लोबल साउथ के कई लोग यूक्रेन संघर्ष पर पश्चिमी कथा को स्वीकार नहीं करते और पश्चिमी प्रतिबंधों का पालन नहीं करते. वे रूस द्वारा आयोजित कई कार्यक्रमों में भाग लेते हैं और अपने देशों में कई रूसी प्रतिनिधिमंडलों का स्वागत करते हैं
जी20 नई दिल्ली शिखर सम्मेलन के घोषणा पत्र में, यूक्रेन संघर्ष पर पैराग्राफ में, रूस का नाम नहीं लिया गया है, जो दिखाता है कि वैश्विक दक्षिण के जी20 सदस्य रूस को यूक्रेन संघर्ष के लिए एकमात्र जिम्मेदार ठहराने की पश्चिम की एकतरफा स्थिति का समर्थन नहीं करते. ब्रिक्स का विस्तार, जिसमें पांच नए सदस्य – मिस्र, सऊदी अरब, ईरान, यूएई और इथियोपिया शामिल हुए हैं, यह दर्शाता है कि रूस को अलग-थलग करने की पश्चिमी रणनीति बुरी तरह विफल हो गई है. खासकर जब इनमें से कुछ देशों के अमेरिका के साथ करीबी राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा संबंध हैं. कई ग्लोबल साउथ के देशों – जिनकी संख्या 30 तक बताई जा रही है – ने ब्रिक्स सदस्यता के लिए आवेदन किया है, जिसमें नाटो सदस्य तुर्की भी शामिल है. अगला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन कज़ान में होने वाला है. ग्लोबल साउथ के कई लोग रूस को, जो दुनिया का सबसे बड़ा देश है, विशाल प्राकृतिक संसाधनों का मालिक है, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और एक मजबूत परमाणु शक्ति है, एक बहुध्रुवीय व्यवस्था बनाने के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं. ऐसी व्यवस्था ही अंतरराष्ट्रीय शासन में वैश्विक दक्षिण को आवाज देगी.
पश्चिम ने यूक्रेन में सैन्य संघर्ष को बढ़ाते हुए यूक्रेनी सशस्त्र बलों को अधिक घातक हथियार प्रदान किए हैं ताकि वे रूसी लक्ष्यों पर हमला कर सकें. शुरुआत हवाई रक्षा प्रणालियों, लंबी दूरी की तोपें, टैंक, शक्तिशाली क्रूज मिसाइलें, एफ16 आदि की आपूर्ति से हुई. रूस ने ऐसे बढ़ते आपूर्ति के खिलाफ चेतावनी दी है लेकिन अपने लक्ष्यों से विचलित हुए बिना संयम बरता है. राष्ट्रपति पुतिन ने पश्चिम को चेतावनी दी है कि उन्हें समझना चाहिए कि रूस एक परमाणु शक्ति है और यदि उसके अस्तित्व को खतरा हुआ तो वह परमाणु हथियारों से अपनी रक्षा करेगा. उन्होंने 2018 में घोषणा की थी कि रूस एक नया आईसीबीएम मिसाइल और लंबी दूरी के पानी के नीचे ड्रोन विकसित कर रहा है जिसके खिलाफ पश्चिम के पास कोई रक्षा नहीं है. उन्होंने इसे बाद में भी दोहराया है.
पश्चिमी देश, लगातार रूस की चेतावनियों को नजरअंदाज करते रहे हैं. उनका विश्वास है कि रूस ब्लफ कर रहा है और पश्चिम को डरना नहीं चाहिए. इसके बदले, पश्चिमी आवाजें चेतावनी दे रही हैं कि पश्चिम के पास भी परमाणु हथियार हैं, और टिप्पणीकार रूस के ब्लैक सी को नष्ट करने की धमकी दे रहे हैं. फ्रांस ने यूरोप की रक्षा के लिए अपने परमाणु शस्त्रागार तक पहुंच की पेशकश की है. यूक्रेन को नाटो द्वारा आपूर्ति किए गए हथियारों का उपयोग करके अब रूस के पूर्व यूक्रेनी क्षेत्र पर हमला करने की अनुमति दी गई है, साथ ही ब्लैक सी में रूस के बेड़े पर भी हमला किया गया है, जिससे काफी नुकसान हुआ है. यूक्रेन ने लंबी दूरी के ड्रोन का उपयोग करके रूस के अंदर गंभीर लक्ष्यों पर भी हमला किया है. अगस्त 2024 में, यूक्रेन ने रूस के कुर्स्क क्षेत्र में घुसपैठ की, जो हिटलर के बाद रूस पर पहला भूमि आक्रमण था. इस आक्रमण के प्रतीकात्मक महत्व को रूस नजरअंदाज नहीं कर सकता.
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